Saturday, July 23, 2011

man udhan varyache - ag bai arrecha




मायेच्या  हळव्या  स्पर्शाने  खुलते
नात्यांच्या  बंधात धुंद  मोहरते
मायेच्या  हळव्या  स्पर्शाने  खुलते
नात्यांच्या  बंधात धुंद  मोहरते
मन   उधान  वाऱ्याचे
गुज  पावसाचे
का  होते  बेभान  कसे  गहिवरते
मन   उधान  वाऱ्याचे
गुज  पावसाचे
का  होते  बेभान  कसे  गहिवरते
 मन   उधान  वाऱ्याचे



आकाशी  स्वप्नांच्या  हरकून  भान  शिरते
हुरहुरत्या  सांजेला  कधी  एकटेच  फिरते
सावरते  बावरते  घर  ते  अद्खते  का  पडते
कधी  आशेच्या  हिंदोल्यावर
मन  हे  वेडे  झुलते
मन  तरंग  होऊन  पाण्यावरती  फिरते
आणि क्षणात  फिरुनी  आभाळाला  भिडते

मन   उधान  वाऱ्याचे
गुज  पावसाचे
का  होते  बेभान  कसे  गहिवरते

 मन   उधान  वाऱ्याचे

रुणझुणते  गुणगुणते
कधी  गुंतता  हरवते
कधी  गहिऱ्या डोळ्यांच्या  डोहात  पार  बुडते
तळमळते  सारखे  भाबडे  नकळत  का  भरकटते
कधी  मोहाच्या  चार  क्षणाला  मन  हे  वेडे  भुलते
जाणते  जरी  हे  पुन्हा  पुन्हा  का  चुकते
भाबडे  तरीहे  भासांच्या  मागून  पडते

मन   उधान  वाऱ्याचे
गुज  पावसाचे
का  होते  बेभान  कसे  गहिवरते

 मन   उधान  वाऱ्याचे

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